वसीयत के बिना क्या मिलेगा बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में किया साफ

Indian News Desk:

HR Breaking News (ब्यूरो) : पिता की संपत्ति पर जितना बेटों का अधिकार हैं, उतना ही बेटियों का है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट  (Supreme Court) के जस्टिस एस अब्दुल नजीर और कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह फैसला सुनाया. जजों ने कहा कि जमीन-जायदाद से जुड़े उत्तराधिकार के 1956 से पहले के मामलों में भी बेटियों को बेटों के बराबर ही अधिकार होगा. अगर किसी जमीन-जायदाद के मालिक की मृत्यु वसीयत लिखने से पहले (Intestate) हो गई है तो उसकी स्वअर्जित-संपत्ति उत्तराधिकार के सिद्धांत (Inheritance) के तहत उसकी संतानों को मिलेगी. 

मामले में सुप्रीम कोर्ट  (Supreme Court)  ने कहा कि भले वह बेटा हो, बेटी या दोनों. ऐसी संपत्ति उत्तरजीविता (Survivorship) के नियम के अनुसार मरने वाले के भाइयों या अन्य सगे-संबंधियों को हस्तांतरित नहीं होगी. फिर चाहे वह व्यक्ति अपने जीवनकाल में संयुक्त परिवार का सदस्य ही क्यों न रहा हो. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को पलटते हुए सुनाया है, जिसमें बिना वसीयत लिखे ही 1949 में स्वर्गवासी हुए मरप्पा गोंदर की जायदाद उनकी बेटी कुपाई अम्मल को नहीं देने का आदेश दिया गया था. 

जस्टिस कृष्ण मुरारी ने इस फैसले के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारे तो प्राचीन ग्रंथों (मिताक्षरा और दायभाग कानून) में भी महिलाओं को बराबर का उत्तराधिकारी माना गया है. चाहे स्मृतियां हों, टीकाएं या फिर अन्य ग्रंथ. उनमें तमाम ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें पत्नी, बेटी जैसी महिला उत्तराधिकारियों को मान्यता दी गई है. ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं भारतीय हिंदू समाज में उत्तराधिकार कानून को…

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इतिहास (Hindu Succession Act, 1956)

भारतीय हिंदू समाज में उत्तराधिकार के संबंध में याज्ञवलक्य स्मृति के नियम प्रचलित थे.  याज्ञवलक्य स्मृति, धर्मशास्त्र परंपरा का एक हिंदू ग्रन्थ है, जो सबसे अच्छी व व्यस्थित रचना मानी जाती है. इस ग्रन्थ में ही सबसे पहले महिलाओं की संपत्ति के अधिकार के संबंध में जिक्र मिलता है. इस ग्रन्थ में दो कानून महत्वपूर्ण थे. एक था विज्ञानेश्वर रचित मिताक्षरा और जीमूतवाहन रचित दायभाग. 

दायभाग कानून बंगाल और असम में चलता था. जबकि देश के बाकी हिस्सों में मिताक्षरा का कानून चलता था. मिताक्षरा के अंतर्गत चार तरह की संप्रदाय थे. मिथिला, बनारस, महाराष्ट्र-बॉम्बे और द्रविड़ संप्रदा. दोनों ही कानून में पुत्रों को संपत्ति देना का जिक्र था. हालांकि इसके अंतर्गत संपत्ति के तीन प्रकार का जिक्र किया गया था. 

  •  व्यक्ति ने जो संपत्ति स्वयं अर्जित की हो.
  •  पैतृक संपत्ति
  •  अन्य – माता, पिता व रिश्तेदारों द्वारा दी गई संपत्ति.

व्यक्ति ने जो संपत्ति स्वयं अर्जित की है, उस संपत्ति को वह अपनी इच्छानुसार जिसे देना चाहे दे सकता था. जबकि पैतृक संपत्ति उसके पुत्रों और पौत्रों को ही मिलती थी. लेकिन दायभाग कानून में ऐसा नहीं था. मिताक्षरा में पिता की संपत्ति का पुत्रों का जन्म से अधिकार होता था. जबकि दायभाग में पिता की मृत्यु के बाद पुत्र उसका हिस्सेदार बनता था. ऐसे में मिताक्षरा में पुत्र पिता के जीवित रहते संपत्ति का बंटवारा कर सकता था. लेकिन दायभाग में ऐसा नियम नहीं था. 1956 तक देश में यही परंपरा चलती थी. इसमें लैंगिक असमानता थी. ऐसे में हिंदू उत्तराधिकार के लिए इन दोनों ही कानूनों को संशोधित किया गया.  इसमें धार 8-13 को जोड़ दिया गया. इसके अंतर्गत जिक्र किया गया था कि वसीयता लिखे बिना मरने पर पिता की संपत्ति का बंटवारा निम्न आधार पर किया जाएगा. 

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वारिस में पुत्र, पुत्री, माता, विधवा पत्नी व अन्य होंगे. वहीं, अगर ये न हों तो पिता, पुत्री की पुत्री या उसका पुत्र संपत्ति लेंगे. अगर ये भी जिंदा न हों तो गोत्रज को मिलेगा, वहीं अगर ये भी न हों तो मृतक के बंधू, नाना, नानी आदि को मिलेगा और ये भी न हों तो उस व्यक्ति की संपत्ति दान दी जाएगी. 

हालांकि, इस कानून में भी कई तरह की कमियां थीं. इस कानून को लेकर महिलाओं ने आपत्ति दर्ज कराई गई. उनका कहना था कि ये कानून सिर्फ कागजी हैं. जिसके बाद कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में 1956 के कानून में सुधार करके हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 लाया गया जो कि 1 सितंबर 2005 को लागू हुआ. इस कानून के तहत महिलाओं को संपत्ति में व्यापक अधिकार दिए गए. इस कानून के तहत महिलाओं को स्वअर्जित  व पैतृक संपत्ति में भी पूर्ण अधिकार दिया गया. फिर अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के अधिकार को और विस्तारित किया.

शीर्ष अदालत ने उस वक्त स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार कानून-1956 (Hindu Succession Act-1956) के लागू होने के बाद से ही बेटियों को पिता, दादा, परदादा की स्वअर्जित संपत्ति में बेटों के बराबर का अधिकार सुनिश्चित है. ताजा फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यह भी पक्का कर दिया है कि पैतृक संपत्ति में बेटियों और बेटों के बराबर के अधिकार 1956 से पहले के मामलों में भी लागू होंगे.
 

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